स ते॑ जानाति सुम॒तिं य॑विष्ठ॒ य ईव॑ते॒ ब्रह्म॑णे गा॒तुमैर॑त्। विश्वा॑न्यस्मै सु॒दिना॑नि रा॒यो द्यु॒म्नान्य॒र्यो वि दुरो॑ अ॒भि द्यौ॑त् ॥६॥
sa te jānāti sumatiṁ yaviṣṭha ya īvate brahmaṇe gātum airat | viśvāny asmai sudināni rāyo dyumnāny aryo vi duro abhi dyaut ||
सः। ते॒। जा॒ना॒ति। सु॒ऽम॒तिम्। य॒वि॒ष्ठ॒। यः। ईव॑ते। ब्रह्म॑णे। गा॒तुम्। ऐर॑त्। विश्वा॑नि। अ॒स्मै॒। सु॒ऽदिना॑नि। रा॒यः। द्यु॒म्नानि॑। अ॒र्यः। वि। दुरः॑। अ॒भि। द्यौ॒त्॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे यविष्ठ ! योऽर्य ईवते ब्रह्मणे गातुमैरदस्मै विश्वानि सुदिनानि रायो द्युम्नानि दुरोऽभि वि द्यौत् स ते सुमतिं जानाति ॥६॥